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हिंदी संकट

देश हमारा, संस्कृति हमारी
देश हमारा, संस्कृति हमारी
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एक प्रसिद्ध कहावत है कि अगर आप किसी सभ्यता को ख़त्म करना चाहते हैं तो उनसे बस उनकी भाषा छीन लीजिये। इस कहावत से स्पष्ट है कि किसी भी समाज या सभ्यता के वजूद के लिए उनकी भाषा कितना अधिक महत्व रखती है।मेरे विचार से भाषा को इतना अधिक महत्व इसलिए दिया गया है क्योंकि किसी समाज की संस्कृति और भाषा एक ही कोख से जन्म लेती हैं। इसलिए उस संस्कृति का विवरण उसकी अपनी भाषा से बेहतर किसी और भाषा में नहीं किया जा सकता।

हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत के अधिकतर शिक्षित लोग हिंदी बोलते, लिखते, एवं समझते हैं। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान , अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल और भूटान के लोग भी हिंदी जानते हैं। कुल मिलाकर विश्वकी जनसँख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा हिंदी जानता है। हर भारतीय का ये कर्त्तव्य है की वो हिंदी के प्रचार प्रसार एवं संरक्षण में योगदान दे।

परन्तु आज कल की स्थिति कुछ और ही बयान कर रही है। युवाओं के ह्रदय में मातृभाषा के लिए आदर घट रहा है और वे अंग्रेजी की तरफ अधिक आकर्षित हो रहे हैं। अभिभावक भी अपने बच्चों को अंग्रेजी में महारत हासिल करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं एव उनके हिंदी-ज्ञान पर तनिक भी ध्यान नहीं दे रहे। ये स्थिति शर्मनाक एवं घृणा के योग्य है। आलम यहाँ तक पहुँच गया है के देश के लोग हिंदी को अंग्रेज़ी की अपेक्षा तुच्छ समझने लगे हैं।स्थिति सचमुच भयप्रद है।

एक किस्सा बताना चाहूँगा।मेरी एक बुआ जी हैं। उनका लड़का तीन साल का है। वो जब से पैदा हुआ है, उन्होंने उससे सिर्फ अंग्रेजी में बात की है। सभी घर वालों को सख्त निर्देश हैं कि उससे सिर्फ अंग्रेजी में बात की जाये।
उन्हें इस पर बड़ा गर्व है।जब मैं अपनी माताजी के साथ उनके घर गया तो उन्हें ये बहुत अच्छा लगा, परन्तु मुझे ये बड़ा अटपटा लगा।
मैं उन्हें टोकना चाहता था पर लिहाज़ के कारण कुछ कह नहीं सका। आलम यहाँ तक पहुँच गया है कि वो बच्चा अपनी उम्र के बच्चों सेे कई गुना अच्छी अंग्रेजी बोलता और समझता है, लेकिन हिंदी सिर्फ नाम मात्र को जानता है।

आप ही सोचिये ये कहाँ तक सही है।
आज कल के युवाओं में ये वाक्य ‘मुझे ज्यादा हिंदी नहीं आती’ न केवल साधारण हो गया है, बल्कि ये वाक्य बड़े गर्व से बोला जाने लगा है। इससे अधिक निंदनीय और घृणास्पद क्या हो सकता है, कि आपको इस बात की शर्म तो दूर ,बल्कि गर्व है कि आप अपनी भाषा से अनजान हैं।

अंग्रेजी को हम बिलकुल छोड़ दें, ऐसा मेरा मत नहीं है। मैं तो केवल इतना चाहता हूँ कि हम अंग्रेजी को मात्र एक द्वितीय भाषा की हैसियत दें, और हिंदी को प्रथम भाषा की।

कई लोगों का ये तर्क रहता ही कि प्रगति के लिए, विकास के लिए , अंग्रेजी अनिवार्य है। परन्तु ऐसा सोचना बिलकुल ग़लत है। जापान का उदहारण आपके समक्ष है।वहां अधिकतर लोग अपनी मात्रभाषा का ही उपयोग करते हैं, अंग्रेजी का नहीं। फिर भी जापान आज दुनिया के विकसित देशों में शुमार है।

देवभाषा संस्कृत, जिस मेँ संसार का पहला ग्रन्थ लिखा गया, जिसका व्याकरण सबसे शुद्ध और विकसित मन गया है, और जिस से आधुनिक संसार की कई भाषाएँ विकसित हुई हैं, उसे तो हम बहुत पहले ही खो चुके हैं। अगर हमारा रवैया ऐसा ही रहा तो हम अपनी जान से प्यारी भाषा हिंदी को भी खो देंगे। मैं सभी से अपील करना चाहता हूँ कि वो हिंदी के संरक्षण के लिए अपने स्तर पर हर संभव प्रयास करें।

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